नई दिल्ली: दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने ओखला लैंडफिल साइट का दौरा किया. उनके साथ मेयर राजा इकबाल सिंह भी मौजूद रहे.

ओखला लैंडफिल साइट के दौरे पर दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा ''जैसे डायनासोर विलुप्त हो गए, वैसे ही ये लैंडफिल भी देश से गायब हो रहे हैं. यह पीएम मोदी का विजन है, जिस पर सीएम रेखा गुप्ता काम कर रही हैं. अक्टूबर 2025 तक हम यहां से 20 लाख मीट्रिक टन पुराना कूड़ा हटा देंगे. उसके बाद ये पहाड़ लगभग गायब हो जाएगा. हमारा लक्ष्य 2028 तक दिल्ली से कूड़े के सारे पहाड़ खत्म करना है, उसके बाद ये लैंडफिल सिर्फ तस्वीरों में रह जाएंगे"

यह लैंडफिल साइट सबसे पुरानी है. इस लैंडफिल साइट से जमा कूड़े को हटाने की कवायद सबसे पहले शुरू हुई थी. यहां नजदीक ही कूड़े से बिजली बनाने के प्लांट लगाए गए थे और अन्य कूड़ा निस्तारण के जो उपाय होते हैं, वह की गई है.पर्यावरण मंत्री इन सभी का जायजा लिया और इस काम में तेजी कैसे लाई जाए इस पर भी अधिकारियों संग बात की.

जानिए ओखला लैंडफिल साइट के बारे में जरूरी जानकारी

दिल्ली की सभी रिहायशी कॉलोनी व व्यवसायिक इलाके से प्रतिदिन निकलने वाले करीब 10-12 हज़ार मीट्रिक टन कूड़े के निस्तारण की जिम्मेदारी एमसीडी की है. प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले कूड़े में 32 फीसदी खाद बनाने योग्य सामग्री होती है. अन्य रिसाइक्लिंग होने वाले पदार्थ में 6.6 फीसदी कागज, 1.5 फीसदी प्लास्टिक, 2.5 फीसदी धातु व अन्य भवन निर्माण में प्रयुक्त मेटेरियल होता है.

साल 2008 में बिजली तैयार करने वाले संयंत्र लगाए गए

बता दें, ओखला, गाजीपुर तथा भलस्वा लैंडफिल साइट पर पहले से ही कूड़ा ठसाठस भरा है. कूड़ा निस्तारण के लिए व्यापक स्तर पर कवायद वर्ष 2008 में शुरू हुई, लेकिन अन्य विकसित देश के जिन शहरों में कूड़ा निस्तारण के लिए वर्षों पहले जिस तकनीक का सहारा लिया गया. उस तकनीक का दिल्ली में अब इस्तेमाल हो रहा है. परिणाम है कि दक्षिणी दिल्ली के ओखला लैंडफिल साइट पर प्रतिदिन तीन हजार मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा फेंका जाता है और वहां वर्ष 2008 में कूड़े से बिजली तैयार करने के लिए लगे संयंत्र आधे कूड़े को भी ठिकाना नहीं लगा पा रहे.

आधा भी नहीं हो पाया पौधारोपण का काम

एमसीडी के उद्यान समिति के पूर्व चेयरमैन धर्मवीर ने बताया कि भलस्वा, गाजीपुर, ओखला स्थित तीनों लैंडफिल साईटों के इर्दगिर्द ढेरों पेड़-पौधे लगाकर कूड़ों के ढेर को पेड़ों से ढकने की योजना तैयार की गई है. ताकि लैंडफिल से प्रचुर मात्रा में निकलने वाली कार्बन डाईआक्साइड, मिथेन, क्लोरो फ्लोरो कार्बन जैसी जहरीली गैसों को इर्दगिर्द लगे पेड़ों से निकलने वाली आक्सीजन गैस रिफाइन करने का भी काम कर सकेगी और जहरीली गैस व बदबू को आसपास के रिहायशी इलाकों में रहने वाले लोगों तक पहुंचने से रोका जा सके. मगर इस योजना के बाद एमसीडी के इंजीनियरिंग व उद्यान विभाग द्वारा तालमेल बैठाकर काम न करने से मौजूदा लैंडफिल साइट पर पौधारोपण का काम आधा भी नहीं हो पाया है.

कूड़ा निस्तारण के लिए अब तक की गई कवायद

नागपुर, बंगलुरू, अहमदाबाद शहर में कूड़ा निस्तारण के लिए वेस्ट मैनेजमेंट का जो तरीका प्रयोग किया जा रहा है, इसका अध्ययन करने के लिए बीते वर्षों में कई बार एमसीडी के अधिकारियों ने वहां के दौरे पर गए थे. लेकिन किसी तकनीक पर सहमति नहीं बनने से ठीक तरह से उसे लागू नहीं कर पाए. कूड़ा निस्तारण के लिए संयंत्र लगाने में सुस्ती के साथ ही एमसीडी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है लैंडफिल साइट के समीप कूड़ा प्रोसेसिंग प्लांट लगाने के लिए जगह हासिल करना. वर्ष 2022 में एमसीडी की सत्ता में आई आम आदमी पार्टी के एजेंडे में भी कूड़े के पहाड़ को हटाना सबसे ऊपर था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.